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मैं नहीं जानती की तुम जीवित हो या ... / आन्ना अख़्मातवा

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मैं नहीं जानती कि तुम जीवित हो या मर गए
इस धरा पर, क्या तुम्हें खोजा जा सकता है ?
अथवा सिर्फ शाम की धुँधली छटा में

शोक सन्तप्त होकर याद करके
सब कुछ तुम्हारे लिए ; रोज़ की प्रार्थना,
गर्म रात्रि की अकुलाहट,
मेरी कविताओं की सफ़ेद उड़ान,
और मेरी आँखों के नीले अंगारे ...

मेरा कोई अंतरंग नहीं था,
नहीं सताया किसी ने मुझे इस तरह,
ऐसा भी कोई नहीं, जिसने मुझे धोखा दिया,
ऐसा भी नहीं, जिसने करीब आ कर भुला दिया मुझे ...

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : गौतम कश्यप
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