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मैं नहीं बोला, कि वे बोला किये / माखनलाल चतुर्वेदी

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मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये।
हृदय में बेचैन
मुख खोला किये,
दो हृदय ले, तौल पर तौला किये।

यह न था बाजार, पर
उनके तराजू हाथ में थी,
क्रोध के थे, किन्तु उनके
बोल थे कि सनाथ मैं थी,
सुघढ़, मन पर
गर्व को तौला किये,
झूलती, प्रभु-बोल का डोला किये,
मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये।

आज चुम्बन का प्रलोभन
स्नेह की जाली न डाली,
नहीं मुझ पर छोड़ने को
प्रेम की नागिन निकाली,
सजनि मेरे
प्राणों का झोला किये;
डालते थे प्यार को, वे क्रोध का गोला किये,
मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये।

समय सूली-सा टँगा था,
बोल खूँटी से लगे थे,
मरण का त्यौहार था सखि,
भाग जीवन-धन जगे थे,
रूप के अभिमान में जी का जहर घोला किये,
मैं नहीं बोली, कि वे बोला किये।