भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पाया है मैं पाया है / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 15 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह }} Category:पंजाबी भाषा {{KKCatKavita}} <poem> मैंने पा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने पाया है, हाँ तुम्हें पाया है,
तुमने अपना रूप बदल लिया है।
कहीं तो तुम तुर्क़ बनकर ग्रन्थ पढ़ते हो और कहीं हिन्दू बनकर भक्ति में डूबे हो
कहीं लम्बे घूँघट में स्वयं को छुपाए रहते हो।
तुम घर-घर जाकर लाड़ लड़ाते हो।

मूल पंजाबी पाठ

मैं पाया है मैं पाया है,
तैं आप सरूप बताया है,
कहूं तुर्क किताबाँ पढ़ते हो,
कहूं घोर घूँघट में पड़ते हो,
हर घर-घर लाड़ लड़ाया है।