भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं पूछता हूँ/ पाश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
 
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
+
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाए कुचलती चली जाए
+
कि घटनाएँ कुचलती चली जाएँ
 
मस्त हाथी की तरह  
 
मस्त हाथी की तरह  
एक पुरे मनुष्य की चेतना?
+
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
 
कि हर प्रश्न  
 
कि हर प्रश्न  
काम में लगे जिस्म की गलती ही हो?
+
काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?
  
क्यूं सुना दिया जाता है हर बार  
+
क्यूँ सुना दिया जाता है हर बार  
पुराना चुटकूला
+
पुराना चुटकुला
क्यूं कहा जाता है कि हम जिन्दा है
+
क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा है
 
जरा सोचो -
 
जरा सोचो -
कि हममे से कितनो का नाता है  
+
कि हममे से कितनों का नाता है  
जींदगी जैसी किसी वस्तु के साथ!
+
ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !
  
 
रब की वो कैसी रहमत है  
 
रब की वो कैसी रहमत है  
जो कनक बोते फटे हुए हाथो-
+
जो कनक बोते फटे हुए हाथों-
और मंडी बिच के तख्तपोश पर फैली हुई मास की  
+
और मंडी के बीचोबीच के तख़्तपोश पर फैली हुई माँस की  
 
उस पिलपली ढेरी पर,
 
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है?
+
एक ही समय होती है ?
  
आखिर क्यों  
+
आख़िर क्यों  
बैलो की घंटियाँ
+
बैलों की घंटियाँ
और पानी निकालते ईजंन के शोर अंदर
+
और पानी निकालते इंजन के शोर में
 
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
 
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीखतीं ख़ामोशी?
+
एक चीख़तीं ख़ामोशी ?
  
कोन खा जाता है तल कर  
+
कौन खा जाता है तल कर  
 
मशीन मे चारा डाल रहे  
 
मशीन मे चारा डाल रहे  
कुतरे हुए अरमानो वाले डोलो की मछलिया?
+
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलो की मछलियाँ ?
क्यों गीड़गड़ाता है  
+
क्यों गिड़गिड़ाता है  
मेरे गाव का किसान  
+
मेरे गाँव का किसान  
एक मामूली से पुलिसऐ के आगे?
+
एक मामूली से पुलिसए के आगे ?
कियो किसी दरड़े जाते आदमी के चीकने को
+
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चौंकने के लिए
हर वार
+
हर वार को
कवीता कह दिया जाता है?
+
कविता कह दिया जाता है?
 
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से  
 
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से  
 
</poem>
 
</poem>

22:13, 24 मार्च 2013 के समय का अवतरण

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाएँ कुचलती चली जाएँ
मस्त हाथी की तरह
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
कि हर प्रश्न
काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?

क्यूँ सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा है
जरा सोचो -
कि हममे से कितनों का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !

रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथों-
और मंडी के बीचोबीच के तख़्तपोश पर फैली हुई माँस की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है ?

आख़िर क्यों
बैलों की घंटियाँ
और पानी निकालते इंजन के शोर में
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीख़तीं ख़ामोशी ?

कौन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलो की मछलियाँ ?
क्यों गिड़गिड़ाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली से पुलिसए के आगे ?
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चौंकने के लिए
हर वार को
कविता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से