भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं पूरा पेड़ हूँ / अनामिका अनु

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:14, 30 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका अनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर्फ एक पेड़ का छेद नहीं, मैं पूरा पेड़ हूँ
नहीं मैं केवल योनि हूँ
जहाँ मेरी सारी गरिमा और पवित्रता बनी हुई है
मैं एक पूर्ण व्यक्तित्व हूँ
मजबूत, सक्षम, सफल
किसी के झटके में शायद शरीर हार गया होगा
लेकिन दिमाग कभी नहीं होगा ।
मैंने पृष्ठभूमि से कहा
अब सबसे आगे से प्रचार -
मैं नहीं हारूँगा ।

मैं घुसपैठ को रोक नहीं सकता
पेड़ के छेद में घातक साँप का
लेकिन यह मेरी जड़ें भी नहीं हिलाता है
मेरा विकास, फूल और फल कम नहीं होते
मैं पेड़ ही रहता हूँ ।
मेरे कई पत्ते गिर गए
हवाओं से फटी कई शाखाएंँ
लेकिन मैं नई पत्तियां उगाई, बोर नई शाखाएँ
मेरे बीज के नए पेड़ बनाए
सिर्फ एक पेड़ का छेद नहीं, मैं पूरा पेड़ हूँ ।

बहने वाले लाल रक्त को मत बुलाओ
मेरे छेद से, अशुद्ध
इसमें निर्माण का आश्वासन है
इसमें निरंतरता का घमण्ड है
यह कुछ नहीं के लिए लाल नहीं है
इसमें जीवन की दहाड़ है
शक्ति की शक्ति
यह मेरा सबसे सुंदर स्राव है
जीवन से भरा हुआ
इसमें मातृत्व की शुभ खुशबू है
मेरा श्रृंगार, मेरी पहचान
शायद मेरा सबकुछ नहीं हो सकता, लेकिन यह बहुत कुछ है