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मैं बन चुकी तमाशा रूसवा खड़ी हूँ अब तक / बेगम रज़िया हलीम जंग
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मैं बन चुकी तमाशा रूसवा खड़ी हूँ अब तक
बरसों से फिर रही हूँ भटकी हुई हूँ अब तक
तेरी तलाश के सब रस्ते रूके हुए हैं
बरसों से दिल है घाएल ज़ख़्मों भरी हूँ अब तक
कोई तबीब कोई मरहम भी मिल न पाया
आ जा मेरे मसीहा मैं मुल्ताजी हूँ अब तक
जब तक न तू मिलेगा बन बन फिरूँगी यूँ ही
दीवानी तेरी बन के मैं फिर रही हूँ अब तक