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मैं भीनी रात-सी इस आसमान में छा रही हूँ / मंजुला सक्सेना
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मैं भीनी रात-सी इस आसमान में छा रही हूँ
कुहुक मल्हार-सा उर में गगन के गा रही हूँ ।
कौन कहता है सच सुना उसने ?
कौन बोला है सच ज़माने से ?
एक चुप्पी है राज़ रहती है
बात बन जाती है ज़माने में ।
रचनाकाल : 25 फ़रवरी 2009