भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं भी क्या कुछ गा सकता हूँ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:22, 20 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं भी क्या कुछ गा सकता हूँ
बनकर छन्द उमड़ पड़ती है
द्रवित हृदय की अमित वेदना
साधक के स्वर में कहती है
मुखरित होकर स्वयं साधना
उस स्वर को मैं अपने स्वर में
कैसे कहो सजा सकता हूँ
अपने को अपनी धुन में
विस्मृत होकर जब खो जाता हूँ
भले न कोई रहे हमारा
मैं तो अपना हो जाता हूँ
तुम चाहो तो उसे छिपा लो
मैं क्या इस छिपा सकता हूँ
होता है अनुराग न जबतक
नहीं रागिनी सध पाती है
बादल भले भुजा फैलाये
क्या बिजली भी बँध पाती है
तुम चाहों स्वर सप्तक साधो
मैं क्या वीणा बजा सकता हूँ
जीवन है तो जलना सीखो
आँधी में भी पलना सीखो
तुम्हें सीखने की इच्छा हो
शशि से खूब मचलना सीखो
स्वयं अमर हो सका न अबतक
कैसे तुम्हें बना सकता हूँ
मैं भी क्या कुछ गा सकता हूँ