Last modified on 18 सितम्बर 2016, at 04:23

मैं भी गुम माज़ी में था / प्रखर मालवीय 'कान्हा'

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:23, 18 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रखर मालवीय 'कान्हा' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था

एक बला का शोरो-गुल
मेरी ख़ामोशी में था

भर आयीं उसकी आँखें
फिर दरिया कश्ती में था

एक ही मौसम तारी क्यों
दिल की फुलवारी में था?

सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था

लम्हा लम्हा ख़ाक हुआ
मैं भी कब जल्दी में था?