Last modified on 24 नवम्बर 2008, at 02:00

मैं मिला एक जूतों के फ़ीतों के विक्रेता से / गुन्नार एकिलोफ़

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:00, 24 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुन्नार एकिलोफ़ |संग्रह=मुश्किल से खुली एक खिड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं मिला एक जूतों के फ़ीतों के विक्रेता से
बाज़ार में, छोर पर बंद गली के
वह बेचना चाहता था मुझे फ़ीते
जब कि मेरे पास जूते ही नहीं,
लाल फ़ीते, काले फ़ीते,
फ़ीते सूती और रेशमी
उसने ग़ौर नहीं किया कि मैं नंगे पाँव था
वह यक़ीनन रहा होगा अंधा या बावरा
या, मुमकिन है, कि चतुर सुजान
हमने किया परस्पर अभिवादन
"तुम्हें तो पता है" के संकेत के साथ
और खिलखिला कर हँसे हम एक साथ ।