भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं विप्लव का कवि हूँ ! / मनुज देपावत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='मनुज' देपावत |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> मैं विप्लव का क…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) छो (मैं विप्लव का कवि हूँ ! / 'मनुज' देपावत का नाम बदलकर मैं विप्लव का कवि हूँ ! / मनुज देपावत कर दिया गया है) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | ||
− | मेरी | + | मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन; |
− | अरे किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन ! | + | अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन ! |
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | ||
− | मैं न कभी नीरव रजनी के | + | मैं न कभी नीरव रजनी के अँचल में छुपकर रोता हूँ; |
− | + | आँसू के जल से अतीत के धुँधले चित्र नहीं धोता हूँ; | |
चित्रित करता हूँ समाज के शोषण का वह शोणित प्लावन । | चित्रित करता हूँ समाज के शोषण का वह शोणित प्लावन । | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
आज विकट कापालिक बनकर ! | आज विकट कापालिक बनकर ! | ||
− | महाप्रलय के शंखनाद से मरघट के | + | महाप्रलय के शंखनाद से मरघट के सोए मुर्दों को जगा रहा हूँ ! |
जगा रहा हूँ अभिनव की वह ज्वाल निरंतर, | जगा रहा हूँ अभिनव की वह ज्वाल निरंतर, | ||
− | जलकर जिसमें स्वयं भस्म हो | + | जलकर जिसमें स्वयं भस्म हो जाय पुरातन ! |
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन । | ||
</poem> | </poem> |
06:09, 5 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन;
अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन !
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
मैं न कभी नीरव रजनी के अँचल में छुपकर रोता हूँ;
आँसू के जल से अतीत के धुँधले चित्र नहीं धोता हूँ;
चित्रित करता हूँ समाज के शोषण का वह शोणित प्लावन ।
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।
आज विकट कापालिक बनकर !
महाप्रलय के शंखनाद से मरघट के सोए मुर्दों को जगा रहा हूँ !
जगा रहा हूँ अभिनव की वह ज्वाल निरंतर,
जलकर जिसमें स्वयं भस्म हो जाय पुरातन !
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।