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मैं शब्दों में झूल गई / सुनीता जैन

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आयु के अनगिन आरोपों की
झड़ धूल गई

जाने कब-कब का एकाकीपन
मैं भूल गई

खुल गए हाथ बन्द
हथकड़ियों से-

जब शब्दों के
सावन-झूले
मैं शब्दों में
झूल गई