आयु के अनगिन आरोपों की
झड़ धूल गई
जाने कब-कब का एकाकीपन
मैं भूल गई
खुल गए हाथ बन्द
हथकड़ियों से-
जब शब्दों के
सावन-झूले
मैं शब्दों में
झूल गई
आयु के अनगिन आरोपों की
झड़ धूल गई
जाने कब-कब का एकाकीपन
मैं भूल गई
खुल गए हाथ बन्द
हथकड़ियों से-
जब शब्दों के
सावन-झूले
मैं शब्दों में
झूल गई