http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BC_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C_%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%27%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%27&feed=atom&action=historyमैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ / राज नारायन 'राज़' - अवतरण इतिहास2024-03-29T12:33:41Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BC_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C_%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%27%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%27&diff=156582&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता २: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज नारायन 'राज़' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पन्ना बनाया2013-07-14T03:12:42Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज नारायन 'राज़' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
मैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ<br />
मैं गीत बन के चट्टानों के बीच गूँजा हूँ<br />
<br />
तुलू-ए-सुब्ह का मंज़र अजीब है कितना<br />
मिरा ख़याल है मैं पहली बार जगा हूँ<br />
<br />
मिरा वजूद गनीमत है सोचिए तो सही<br />
मैं ख़ुश्क डाल का पत्ता हरा हरा सा हूँ<br />
<br />
बजा कि रोज़ अँधेरा मुझे निगलता है<br />
मैं रोज़ इक नया ख़ुर्शीद बन के उठता हूँ<br />
<br />
किसी ने बात ही समझी न हाल ही पूछा<br />
अजीब कर्ब के आलम में घर से निकला हूँ<br />
<br />
मैं जानता हूँ कि है इर्तिका की क्या सूरत<br />
मैं आह बन के उठा अब्र बन के बरसा हूँ<br />
<br />
अजीब बात है हर सम्त रास्ते हैं रवाँ<br />
अजीब बात है मैं घर की राह भूला हूँ<br />
<br />
मुझे तलाश करेंगे नई रूतों में लोग<br />
मैं गहरी धुंद में लिपटा हुआ जज़ीरा हूँ<br />
<br />
इस इक सवाल ने रक्खा है मुद्दतों हैराँ<br />
मैं किस का रूप हूँ मैं ‘राज़’ किस की छाया हूँ<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता २