भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं से हम / राकेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:55, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस अंतस्थ में कितना कोलाहल है
कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें
सुनो बुद्ध, विवेक के व्यतिकरण के लिए आये थे इसी सलिल तट
वृक्ष के नीचे यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा
आओ इस तट पर सम हो लेते है
आओ अपने "मैं " से "हम" हो लेते है !