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मैं सोचता रहा रात भर, वो क्या सोचता होगा / शमशाद इलाही अंसारी

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मैं सोचता रहा रात भर, वो क्या सोचता होगा,
वो अपने दिल की धड़कनों में कहीं खो रहा होगा|

कभी बात करते-करते कोई लफ़्ज़ छिटका होगा,
होंठों पे आते-आते मेरा नाम लौटा होगा|

मुड़-मुड़ के आईने में देखा होगा बार-बार
मुग़ालतन मेरी सूरत खुद में देखता होगा|

क्यों लड़ती है वो मुझसे इतना बरस-बरस कर,
तन्हाईयों में उसका दिल पसीजा तो ज़रुर होगा।

मैं जानता हूँ तुम में, है जुनुन बे-शुमार
तेरी चमक के आगे वो "शम्स" बुझ गया होगा।


रचनाकाल: 07.04.2003