Last modified on 23 जनवरी 2017, at 12:45

मैं हूँ अपने गीतों में केवल मैं हूँ / प्रमोद तिवारी

मैं हूं अपने गीतों में
केवल मैं हूं
मैं हूं अपनी रीतों में
केवल मैं हूं

मैं शब्द-शब्द हारा
अपने गीतों में
यद्यपि हर बाज़ी
हर पासा अपना था
आंखों में और नहीं था
कोई प्यारे
जो बार-बार टूटा
मेरा सपना था
फिर भी तो नहीं
गुनगुनाना भूला हूं
मैं हूं अपनी जीतों में
केवल मैं हूं...

खुद अपना घेा
तोड़ भी न पाया था
वाचक बन बैठा
दुनिया की कारा का
जिसने भी हाथ बढ़ाया
लहर थमा दी
बाधक बन बैठा खुद

अपनी धारा का
फिर भी मेरे अधरों
पर वंशी गूंजी
मैं हूं अपने मीतों में
केवल मैं हूं...

ले-देकर
जान लुटाना ही आता था
इसलिए लुट गये
कभी नहीं कह पाये
लेकिन
जब अपने ही
साये ने छुपकर
षड्यंत्र रचे
तो सहज नहीं रह पाये
फिर भी गीतों का मुकुट
शीश पर मेरे
मैं हूं
अपनी प्रीतों में
केवल मैं हूं...