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मैं हूँ अब ग़मगीन मुझे मत छेड़ो जी / सुरेन्द्र सुकुमार

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मैं हूँ अब ग़मगीन मुझे मत छेड़ो जी।
दो कौड़ी का तीन मुझे मत छेड़ो जी।

एक पार्क में दो प्रेमी कोने में हैं,
दृश्य बड़ा रंगीन मुझे मत छेड़ो जी।

एक कार में चलते-चलते रेप हुआ,
कपड़े बहुत महीन मुझे मत छेड़ो जी।

राजनीत में एक दूसरे को ग़ाली देते,
बहुत ही कुत्ता सीन मुझे मत छेड़ो जी।

कहो सुरिन्दर जी चुप क्यों बैठे हो,
लिक्खो जरा नवीन मुझे मत छेड़ो जी।