भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैकाले के खिलौने / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 21 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''इस कविता में …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस कविता में कवि ने अँग्रेज़ों की जी-हुज़ूरी करने वाले अँग्रज़ी-भक्त-भारतीयों पर व्यंग्य कसा है

मेड इन जापान ,
खिलौनों से सस्ते हैं
लार्ड मैकाले के ये नये खिलौने

इन को ले लो पैसे के सौ-सौ दो-दो सौ
अँग्रेज़ी ख़ूब बोलते थे
सिगरेट भी अच्छी पीते थे
हो सकते हैं दो से दो-दो सौ,
ये नये खिलौने इनको ले लो ।

तब तक यह घटने के बजाय
हो जायेंगे करोडों-लाखों
ये सस्ते हैं इन्हें ले लो
पैसे के सौ-सौ दो-दो सौ ।