भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैट्रिक के छात्रों को विदाई / जगदीश जोशी / क्रान्ति कनाटे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 25 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश जोशी |अनुवादक=क्रान्ति कना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र की एक-एक लहर
किनारे की थोड़ी-थोड़ी रेत को
घसीटती जाती है ।

धुली हुई रेत का हरेक कण
सूरज की किरणों में चमकता भी है
और
पाँव को जलाता भी है ।

तुम्हारा आना और जाना
ऋणानुबन्ध !

फिर भी
तुम्हारे जाने से
कोई पुराना ज़ख़्म रह-रहकर
रिसने लगता है
पर कौन जाने क्यों
चीख़ नहीं निकलती ।

मूल गुजराती से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे