भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैराथन में है भविष्य जी / महेश अनघ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 28 दिसम्बर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैराथन में है भविष्य जी
उमर पांच कद पौने तीन

आँखों में आकाश अषाढी
सेब गाल कच भँवरीले
तन में गोकुल-गंध
चाल दुलकी, नथुने गीले-गीले

कसी हुई नवनीत पीठ पर
मैकाले की पुख़्ता ज़ीन

तख़्ती पर कुर्सी छापी
फिर रुपया रुतबा रौब लिखा
तब से ही तोता-रटंत में
ज़्यादा-ज़्यादा जोश दिखा

तनखैया टीचर ट्यूशन में मीठे
कक्षा में नमकीन

पाँच रोज झंडा माता की
जय-जय का अभ्यास किया
छठवें दिन नाचे-गाए
तब मुख्य-अतिथि ने पास किया

खेले खाए तो चपरासी
पढ़े, गए अमरीका चीन ।