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मोरपंख से लिख रही है प्यार / पूनम सिंह

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क्षितिज के उस पार
डूबते सूरज का हाथ थाम
उतर रही है शाम
ताल के गहरे जल में
धीरे धीरे

छत की मुंडेर पर खड़ी एक स्त्री
दीर्घ निःश्वास ले कहती है
शाम हो गई
और उतरने लगती है सीढ़ियाँ

सँझाये घर में
अतल तक जाती सीढ़ियाँ
पानी में डूबी हैं
डूबा है सब कुछ अथाह जल में
लेकिन मछलियों की प्यास
वह कहाँ डूबती है ?
वह तो तैरती ही रहती है
नदी के चौड़े सीने पर
पंजों के बल
भटकती रहती है नंगे पाँव
समुद्री हवाओं की तरह
गर्म रेत पर

ज़िन्दगी के रेतीले मैदान में
भटकती स्त्री देख रही है
नदी के मुहाने पर बैठी
एक लड़की को जो
रंगीन लहरों के आईने में
संवार रही है अपना रूमानी चेहरा
और गीली रेत पर
मोरपंख से लिख रही है ’प्यार‘

कहाँ है -
धरती के किस ओर किस छोर पर?
ब्रहमांड के किस गहन गुह्यलोक में?
स्त्री पूछती है अपने आप से
फिर डबडबायी आँखों से
क्षितिज के उस पार
डूबते सूरज को देखती
उतरने लगती है सीढ़ियाँ