भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोरा जोगिया, मन भावै हो राम / करील जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोरा जोगिया, मन भावै हो राम॥धु्रव॥
लागै सोहावन कपूर जैसन देहिया।
भाल पर चंदा उगावै हो राम॥1॥
आठहू अग जोगी भसम रमावै।
जटा बीच गंगा बहावै हो राम॥2॥
बैठी मसान जोगी धूनियाँ रमावै।
घर-घर अलख जगावै हो राम॥3॥
दुनियाँ में बाँटि जोगी खोवा-मलाई।
भाँग धथूरा चबाबै हो राम॥4॥
अधम ‘करील’ सेवि सिव-पद; रज।
अमल-भगति वर पावै हो राम॥5॥