Last modified on 13 जुलाई 2008, at 18:22

मोरे क्यों गेरेस भूल / हरियाणवी

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोरे क्यों गेरेस भूल,

रूप खिल दिया सरसों का फूल

क्यों बोले से बात दरद की ।

मेरे चुभ से ऎणी रे करद की,

मालुम पट जा वीर मरद की,

पा पीटें हवालात में ।


भावार्थ

(पत्नी अपने पति से मिलने के लिए सिपाही का रूप धर कर पलटन में पति के पास पहुँच गई है। वहीं पर दोनों

के बीच यह वार्तालाप हो रहा है ।)

--'अरी तू यह क्या भूल कर रही है । देख तो तेरा रूप सरसों के फूलों की तरह खिला हुआ है । तू ऎसी बात

क्यों कहती है जिसे सुनकर पीड़ा होती है ? यदि दूसरों को यह भेद मालूम पड़ गया कि यह वीर मर्द कौन है तो

पीट-पीट कर हवालात में बन्द कर देंगे ।