भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मोर को मुकुट सीस भाल खौरि केसर की / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात कवि (रीतिकाल) }} <poem> मोर को मुकुट सीस भाल खौ...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अज्ञात कवि (रीतिकाल)
 
|रचनाकार=अज्ञात कवि (रीतिकाल)
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मोर को मुकुट सीस भाल खौरि केसर की ,
 
मोर को मुकुट सीस भाल खौरि केसर की ,

23:23, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मोर को मुकुट सीस भाल खौरि केसर की ,
लोचन विशाल लखि मन उमहत है ।
मैन कैसे केश श्रुति कुँडल बखत बेस ,
झलक कपोल लखि थिर ना रहत है।
कुलकानि धीरज मलाह मतवारे दोऊ ,
मदन झकोर तन तीर ना गहत है ।
श्याम छवि सागर मे नेह की लहर बीच ,
लाज को जहाज आज बूढ़न चहत है ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।