मोहब्बत में ज़बाँ को मैं नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ कर लूँ
शिकस्ता दिल की आहों को हरीफ़-ए-ना-तवाँ कर लूँ
न मैं बदला न वो बदले न दिल की आरज़ू बदली
मैं क्यूँ कर ए'तिबार-ए-इंक़लाब-ए-ना-तवाँ कर लूँ
न कर महव-ए-तमाशा ऐ तहय्युर इतनी मोहलत दे
मैं उन से दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल को तो बयाँ कर लूँ
सबब हर एक मुझ से पूछता है मेरे होने का
इलाही सारी दुनिया को मैं क्यूँ कर राज़-दाँ कर लूँ