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"मोहल्ले की औरतें / शोभनाथ शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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रामफल..........
+
मोहल्ले की औरतें
सरकार के पीछे भाग रहा है
+
गली के अगले मोड़ पर
गले में सरकारी पट्टा लटकाये
+
एक भीड़ बन कर
सरकारें कहाँ मुड़ती हैं
+
खड़ी हैं...........
पीछे/उसे देखने के लिए...........।
+
हमारे मोहल्ले की औरतें..........।
  
आज तक बेदख़ल है/अपनी ज़मीन से
+
मिलती हैं जब भी
जो उसकी होकर भी/उसकी नहीं है.......
+
भूलती नहीं हैं/जताना ‘अपनापन‘
पट्टा तो सरकारी
+
बात-बात में खबर देती हैं
मिला है, पाँच बीघे का
+
उसी अनुपात में/खबर लेती भी हैं
काबिज़ होने की
+
ताने भी मारती हैं,
जद्दोजेहद जारी है अब तक
+
तो ‘मिसरी‘ की मिठास सी,
दस साल से ऊपर
+
हर दंद में, हर फंद में
का समय निकल चुका है
+
एक रंग हैं, ये ऽऽ......  
पानी सर के ऊपर/बह चुका है
+
मोहल्ले की औरतें....।।
इसी बीच सरकारें आईं
+
प्रतियोगी भाव लिये
और गईं
+
अन्दर से टीसती हैं
पर उसकी फाइल/और कब्जे की अप्लीकेशन
+
पर सहज बनीं/ऐसी मुस्कराती हैं
नहीं चली तो नहीं चली..........।
+
सूप तो सूप है
सरकारें कहाँ क्या
+
चलनी को भी छलनी कर जाती हैं
करतीं है........
+
खाते-पीते घरों की/हट्टी-कट्टी औरतें
 +
पल्लू सरका कर/बाहें दिखाती हैं
 +
हर गली-हर मोड़ पर
 +
नुमाइश बन जाती हैं ।
 +
ऊँचे- ऊँचे ओहदों वाले मर्दो
 +
की झूठी शान बन
 +
यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ
 +
तितलियों सी इतराती हैं, ये ऽ........  
 +
मुहल्ले की औरतें........।।
  
वह विबस है/परबश है
+
अखबारों से/कम ही रिश्ता इनका होता
ठकुराने/वभनाने पुरवा
+
टीवी पर हर शो..........सीरियल
से त्रस्त है..........
+
कहाँ छूटता
इनमें से ही कुछ की
+
समाचार से डर लगता है -।
दबगई ही है/कि
+
उसमें कहाँ/कौन-सा रस मिलता है
कब्जे से वह वेदख़ल है......
+
‘गोधरा काण्ड‘ की सच्चाई
ठाकुर पुरवा से मदद
+
का कहाँ पता है
माँगने जब जाता है
+
‘नंदी ग्राम‘ में किसका बेटा.......
हर-घर में गुहार लगाता है
+
किसका पति हैं कत्ल हुआ
अपनी फरियाद लिये
+
‘देव प्रयाग‘ में कहाँ गिरी
तो वाभन पुरवा नाराज़गी दिखाता है......
+
पर्वत-खाईं में
पिस रहा है/इन्हीं के बीच
+
बस में कितने मरें
तब धूम-फिर बात अड़ती है
+
कौन जनावें.......क्यों जानेंगी
आ विरादरी की
+
‘निठारी काण्ड‘ पर क्षण भर ही
पंचायत बीच/कहाँ क्या तय हो पाता है
+
हतप्रभ होती हैं.....।
कई-कई बार
+
पढ़ी-लिखी हैं
तो बैठी है पंचायत
+
खूब-खूब अच्छी हैं
पर अपनों के बीच में
+
बस-थोड़ी सी ‘गड़बड़‘ है
वह हर बार खुद को
+
अपने तक ही ‘सोच‘ लिए
दुबिधाग्रस्त पाता है...........।
+
संघर्षों से डरती हैं
 +
पर फिर भी अच्छी ही हैं, ऽऽऽ....
 +
ये मोहल्ले की औरतें......।।
  
क्योंकि..............
+
सासू माँओं पर.........
भटक जाती है पंचायत
+
खर्चे की, पाई-पाई/जोड़ लगातीं
खुद व खुद जेनुइन मुद्दों से
+
अपने बच्चों की खातिर
सरक जाते हैं मुद्दे
+
झूठ बोलतीं-ताना सुनतीं
दूसरे की ओर धीरे-धीरे
+
कोल्ड ड्रिंक से फास्ट फूड तक
बहस में आ जाती हैं/औरतें
+
इनकी इच्छा पूरी करतीं
सरकने लगती है जुबान
+
औरों के बच्चों/की ब्रिलियंसी पर
बड़े, बूढ़े-बूढ़ों की
+
अक्सर चिढ़-चिढ़ जातीं
‘लच्छमनियाँ‘ के लच्छन
+
अन्दर-अन्दर रोती रहतीं
अच्छे दिखते नहीं है इधर........।
+
ये गठियाँ, वो गर्दन
उधर ‘राम पियारी‘ की खाट
+
भारी कूल्हों का दर्द झेलतीं
खड़ी करने पर/तुल जाती है पंचायत
+
कथा सुनतीं-पूजा करतीं
भगा कर लाया है/राम लवटन का बेटा........
+
कलश उठातीं
उसे.........जाने कहाँ से
+
गहने खरीदती/महँगे सोफा-बेड़ बनवातीं
कुजात को घर में/रखा है।
+
बाल कटातीं/मेकप करतीं
विरादरी का सत्यानाश
+
भिखमंगों को दुरियाती........।
कर रहा है नालायक
+
घर-घर की बातें करतीं
बिना भात दिये/हुक्का पानी पिलाये.......
+
महगाँई का रोना रोतीं/फिर भी
इतनी बड़ी हिम्मत
+
मस्त-मस्त रहती हैं, ये ऽऽ........  
हमारी छाती पर/मूँग दल रहा है।
+
मोहल्ले की औरतें.....।।
सरपंच बाबू
+
इन्हें ‘इनके‘ नामों से
की मूँछे अचानक/ताव खा जाती हैं
+
जानने की जरूरत नहीं होती
चेहरा अंगारे सा/चमक उठता है
+
ये हर वक्त फलां की मम्मी,
लच्छमनियाँ के बगल
+
फलां की वीवी, फलां की आन्टी......
बैठने को मन करता है-।
+
बन कर रहतीं
कोई न कोई/बहाना चाहते है सरपंच बाबू
+
स्वेटर बुनती......
दूर से घेरना
+
सीरियल देखतीं......
शुरू करती है पंचायत
+
अध्दी-कट्टी इनको भाती
राम लवटन को...........।
+
फैशन के हर नाजुक कपड़े
‘गाँव की इज्जत पर पानी/
+
कड़ी ठन्ड में उसे पहनतीं
न डालो भाई........।
+
बहू-बेटियों औ‘ बेटों की
ऐसी छम्मक-छल्लो बहू
+
हर अन्दरूनी बात छुपातीं
तेरे नालायक बेटे के  
+
गिरती-पड़ती/चलती चलतीं
पास/कहाँ से आई..........।
+
कब्ज बात की शिकार होती
 +
हरदम पस्त पस्त रहती
 +
महरिन से दुगुना काम करातीं
 +
किसी तरह काम निपटाती, ये ऽ ऽ....
 +
मोहल्ले की औरतें......।  
  
बहक गई है पंचायत...........।
+
कोई बबुआइना, कोई सहिबाइन
रामफल.......।
+
कोई ‘ये‘ जी, कोई ‘वो‘ जी
सरपंच बाबू को
+
आदर सूचक शब्द लगा कर
फिर से खींचता चाहता है
+
बड़े प्यार से बतियाती हैं
अपनी जमीन की तरफ
+
पर चर्चा में शामिल होते /औरों के बच्चे-बच्ची ही
कैसे और कब
+
‘अपना तो
कब्जा पायेगा वह........।
+
‘अच्छा ही है/अच्छा ही होगा‘
वह जानता है
+
कर्ज में डूबीं
सरपंच बाबू विरादरी के होते हुए भी
+
उन्हें डाक्टर-इंजीनियर बनातीं
बैठकी देते हैं/हर साँझ
+
ढ़ंीग हाँकतीं/ढ़ोल पीटती
ठाकुर पुरवा में तो कभी वाभन पुरवा में।
+
झूठ बोलतीं
चौपालों में/चल जाती हैं दारू
+
गम में डूबी..........हँसती जातीं
बोतलें खुल जाती हैं और फिर
+
पिसती रहतीं
चर्चा में लच्छमनियाँ के साथ
+
अपनों की खातिर/हर दम-हर पल
और भी कई युवतियाँ
+
फिर भी.............
शामिल हो जाती हैं......।
+
ज़िन्दा दिल लगती हैं
 
+
बहुत-बहुत अच्छी लगती हैं,
उसकी जवानी
+
ये ऽ.....मोहल्ले की औरतें.....
और बेफिक्र हँसी...
+
एक साथ/तेजाब भर देती है
+
गलफड़ों में/और सरपंच बाबू
+
की मूँछों की नोंक
+
अचानक........
+
उनकी उँगुलियों में चुभ जाती है।
+
 
+
और.........
+
रामफल
+
इनके-उनके..............सबके पास
+
दौड़-दौड़ कर
+
हाँफ- हाँफ कर
+
चकनाचूर हो जाता है
+
एक क्षण के लिए
+
कौंध जाती है आत्महत्या
+
की बात........फिर अचानक
+
सँभल जाता है..........।
+
 
+
रामफल........
+
न्याय के लिए लड़ना चाहता है
+
हक के लिए
+
लड़ते-लड़ते
+
वह मर जाना चाहता है
+
मुक्ति की कामना लिए
+
अन्याय के खि़लाफ
+
जड़ होते समाज में
+
उसकी जड़ता के खिलाफ......।
+
दो कदम/आगे बढ़ता है
+
फिर मुड़ कर पीछे देखता है
+
तो गाँव के कुछ युवकों का हाथ
+
एक ताकत की तरह/अपनी ओर
+
उठा हुआ पता है.....।
+
रामफल
+
न्याय की उम्मीद लिए
+
न्यायालय की ओर
+
आगे बढ़ जाता है.........।।।
+
 
</poem>
 
</poem>

17:54, 8 जुलाई 2019 का अवतरण

मोहल्ले की औरतें
गली के अगले मोड़ पर
एक भीड़ बन कर
खड़ी हैं...........
हमारे मोहल्ले की औरतें..........।

मिलती हैं जब भी
भूलती नहीं हैं/जताना ‘अपनापन‘
बात-बात में खबर देती हैं
उसी अनुपात में/खबर लेती भी हैं
ताने भी मारती हैं,
तो ‘मिसरी‘ की मिठास सी,
हर दंद में, हर फंद में
एक रंग हैं, ये ऽऽ......
मोहल्ले की औरतें....।।
प्रतियोगी भाव लिये
अन्दर से टीसती हैं
पर सहज बनीं/ऐसी मुस्कराती हैं
सूप तो सूप है
चलनी को भी छलनी कर जाती हैं
खाते-पीते घरों की/हट्टी-कट्टी औरतें
पल्लू सरका कर/बाहें दिखाती हैं
हर गली-हर मोड़ पर
नुमाइश बन जाती हैं ।
ऊँचे- ऊँचे ओहदों वाले मर्दो
की झूठी शान बन
यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ
तितलियों सी इतराती हैं, ये ऽ........
मुहल्ले की औरतें........।।

अखबारों से/कम ही रिश्ता इनका होता
टीवी पर हर शो..........सीरियल
कहाँ छूटता
समाचार से डर लगता है -।
उसमें कहाँ/कौन-सा रस मिलता है
‘गोधरा काण्ड‘ की सच्चाई
का कहाँ पता है
‘नंदी ग्राम‘ में किसका बेटा.......
किसका पति हैं कत्ल हुआ
‘देव प्रयाग‘ में कहाँ गिरी
पर्वत-खाईं में
बस में कितने मरें
कौन जनावें.......क्यों जानेंगी
‘निठारी काण्ड‘ पर क्षण भर ही
हतप्रभ होती हैं.....।
पढ़ी-लिखी हैं
खूब-खूब अच्छी हैं
बस-थोड़ी सी ‘गड़बड़‘ है
अपने तक ही ‘सोच‘ लिए
संघर्षों से डरती हैं
पर फिर भी अच्छी ही हैं, ऽऽऽ....
ये मोहल्ले की औरतें......।।

सासू माँओं पर.........
खर्चे की, पाई-पाई/जोड़ लगातीं
अपने बच्चों की खातिर
झूठ बोलतीं-ताना सुनतीं
कोल्ड ड्रिंक से फास्ट फूड तक
इनकी इच्छा पूरी करतीं
औरों के बच्चों/की ब्रिलियंसी पर
अक्सर चिढ़-चिढ़ जातीं
अन्दर-अन्दर रोती रहतीं
ये गठियाँ, वो गर्दन
भारी कूल्हों का दर्द झेलतीं
कथा सुनतीं-पूजा करतीं
कलश उठातीं
गहने खरीदती/महँगे सोफा-बेड़ बनवातीं
बाल कटातीं/मेकप करतीं
भिखमंगों को दुरियाती........।
घर-घर की बातें करतीं
महगाँई का रोना रोतीं/फिर भी
मस्त-मस्त रहती हैं, ये ऽऽ........
मोहल्ले की औरतें.....।।
इन्हें ‘इनके‘ नामों से
जानने की जरूरत नहीं होती
ये हर वक्त फलां की मम्मी,
फलां की वीवी, फलां की आन्टी......
बन कर रहतीं
स्वेटर बुनती......
सीरियल देखतीं......
अध्दी-कट्टी इनको भाती
फैशन के हर नाजुक कपड़े
कड़ी ठन्ड में उसे पहनतीं
बहू-बेटियों औ‘ बेटों की
हर अन्दरूनी बात छुपातीं
गिरती-पड़ती/चलती चलतीं
कब्ज बात की शिकार होती
हरदम पस्त पस्त रहती
महरिन से दुगुना काम करातीं
किसी तरह काम निपटाती, ये ऽ ऽ....
मोहल्ले की औरतें......।

कोई बबुआइना, कोई सहिबाइन
कोई ‘ये‘ जी, कोई ‘वो‘ जी
आदर सूचक शब्द लगा कर
बड़े प्यार से बतियाती हैं
पर चर्चा में शामिल होते /औरों के बच्चे-बच्ची ही
‘अपना तो
‘अच्छा ही है/अच्छा ही होगा‘
कर्ज में डूबीं
उन्हें डाक्टर-इंजीनियर बनातीं
ढ़ंीग हाँकतीं/ढ़ोल पीटती
झूठ बोलतीं
गम में डूबी..........हँसती जातीं
पिसती रहतीं
अपनों की खातिर/हर दम-हर पल
फिर भी.............
ज़िन्दा दिल लगती हैं
बहुत-बहुत अच्छी लगती हैं,
ये ऽ.....मोहल्ले की औरतें.....