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मौत का मंज़र हमारे सामने था / डी. एम. मिश्र

मौत का मंज़र हमारे सामने था
थरथराता डर हमारे सामने था।

जेा हमारे क़़त्ल की साज़ि़श में था कल
दोस्त अब बनकर हमारे सामने था।

हम गवाही किस तरह देते बताओ
फिर वही खंजर हमारे सामने था।

लोग बारिश का मज़़ा जब ले रहे थे
एक कच्चा घर हमारे सामने थां।

झूठ पर सब झूठ बोले जा रहे थे
अैर वो ईश्वर हमारे सामने था।