Last modified on 27 जनवरी 2019, at 09:35

मौत की सम्त इक क़दम हर दिन / राज़िक़ अंसारी

मौत की सम्त इक क़दम हर दिन
ज़िन्दगी हो रही है कम हर दिन

ये बुरे वक़्त की अलामत है
दोस्त होने लगे हैं कम हर दिन

तेरा दीवाना पढ़ के नाम तेरा
करता रहता है दिल पे दम हर दिन

अगली नस्लों के काम आयेगा
वक़्त करता हूँ जो रक़म हर दिन

मेरी हस्ती को ख़त्म कर देगा
मुझको खाता है कोई ग़म हर दिन