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मौत से भागता नहीं कोई / हरि फ़ैज़ाबादी

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मौत से भागता नहीं कोई
पर उसे चाहता नहीं कोई

आज सोचो जबाब कल देना
सबसे कुछ माँगता नहीं कोई

देखकर कुछ को, मत कहो सबको
आजकल पतिव्रता नहीं कोई

तुम सदा घूमते ही रहते हो
घर में क्या डाँटता नहीं कोई

हल तो हर मसअले का मुमकिन है
दिल में बस ठानता नहीं कोई

काम सब आदमी से होते तो
राम को मानता नहीं कोई

ऐसा जीना भी कोई जीना है
तुमको पहचानता नहीं कोई