Last modified on 31 मार्च 2020, at 12:51

मौलश्री छाँव में / मधु प्रधान

प्रीति की पांखुरी
छू गई बाँसुरी
गीत झरने लगे
स्वप्न तिरने लगे

साँस में बस गया गाँव एक गन्ध का
देके सौरभ गया पत्र अनुबन्ध का

प्राण झंकृत हुये
तार कुछ अनछुए
राग-अनुराग मय
पल ठहरने लगे

चन्द्रमा को मिली रूप की पूर्णिमा
नेह के मंत्र रचने लगीं उर्मियाँ

थरथराते अधर
गुनगुनाते प्रहर
शून्यता को प्रणव
शब्द भरने लगे

लो विभासित हुई कोई पावन व्यथा
योग संयोग की नव -चिरन्तन कथा
मौलश्री छाँव में
शिंजनी पाँव में
शुभ सृजन के नये
स्वर सँवरने लगे