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मौसी की उलझन / संजय अलंग

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डाली मौसी घर को आईं
नटखट बाबी को खूब घुमाईं
सोने को जब दोनों आईं
बाबी ने एक बात बताई
 
चन्दा है बिल्ली का भाई
मौसी बोली-कैसी यह रीत बनाई

ऍसा कैसे होगा बाबी
होती नहीं ऐसी कोई चाभी

बाबी ने तब पहेली बुझाई
उत्तर झटपट वह ले आई

मैं नहीं करती कोई ड्रामा
चन्दा होते हैं मेरे मामा
होती बिल्ली भी मेरी मौसी
सो ऐसी बात है मैने सोची
होंगे ज़रूर दोनो बहन-भाई
यही सच्ची बात है मैने बताई

रिश्तेदारी आपकी कैसी न्यारी
मौसी भौंचक सारी की सारी