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म्हारा संत सुजान / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    म्हारा संत सुजान
    ध्यान लग्यो न गुरु ज्ञान सी

(१) ज्ञान की माला फेर जोगी,
    आरे बंद में धुणी तो रमावे
    जोगी की झोली जड़ाव की
    मोती माणक भरीया...
    ध्यान लग्यो...

(२) बड़े-बड़े भवर गुफा में,
    आरे जोगी धुणी तो रमावे
    जेका रे आंगणा म तुलसी
    जेकी माला हो फेर...
    ध्यान लग्यो...

(३) चंदन घीस्या रे अटपटा,
    आरे तिलक लीया लगाई
    मोदक भोग लगावीया
    साधु एक जगा बैठा...
    ध्यान लग्यो...

(४) कई ऋषि मुनी तप करे,
    आरे इना पहाड़ो का माही
    अब रे साधु वहा से चल बसे
    गया गुरुजी का पास...
    ध्यान लग्यो...

(५) गंगा जमुना सरस्वती,
    आरे बहे रेवा रे माय
    जीनका रे नीरमळ नीर हैं
    साधु नीत उठ न्हाये...
    ध्यान लग्यो...