Last modified on 14 दिसम्बर 2013, at 03:34

म्हारी सिणगार तणी / किरण राजपुरोहित ‘नितिला’

भाजतो-सो वायरो आयो
अर म्हारी तणी माथै
विलखो-सो पसरग्यो
टांगी ही जठै
काल रात री चांदणी मांय भींज्योड़ी
म्हारै अर उणां रै बिचाळै होयी बात
बिणजारा वायरा!
थूं क्यूं आवै
वारूंवार इण दिस,
म्हारी इण तणी-
छै म्हारो सै सिणगार
म्हारी सगळी मनवार
 
म्हारै इण लैरावत एकांत
थारो कांई काम?
इब ना आईजै वायरा!
आवै तो करजै खंखारो
जिणसूं होय सावचेत
भेळा कर सकूं
म्हारा सगळा सिणगार।