भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारै घर में / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारै घर में
पक्की है ईंटां
रिस्ता कोनीं
जका टूट जासी
पत्थर है, भाठा है
मंजियै रा
बिसवास थोडी है
जका डिग जासी !

चूनो है
रंग-बिरंगो
ओळ्यूं कोनीं
जकी
मोळी पड़ जासी।

जे कर है मजबूत
रिस्ता-विसवास
लूंठी ओळ्यूं
ईंट, भाठा अर चूनै सूं
तो पछै
मिनख क्यूं नीं
म्हारै घर में
बा सूं मजबूत।