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यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैं / अमित गोस्वामी

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यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैं
मुझे लगा था छँटेगा धुआँ, ग़लत था मैं

मेरी तड़प पे भी आँखों में तेरी अश्क न थे
मुझे यक़ीन हुआ तब, कि हाँ, ग़लत था मैं

नज़र में अक्स तेरा, दिल में तेरा दर्द लिए
मैं कब से सोच रहा हूँ, कहाँ ग़लत था मैं

लगा था अश्कों से धुल जाएँगे मलाल के दाग़
मगर हैं दिल पे अभी तक निशाँ, ग़लत था मैं

मेरा जुनून था क़ुर्बत के रतजगे लेकिन
मेरा नसीब है तन्हाइयाँ, ग़लत था मैं