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यथार्थ के ख़ून के छींटे किसी पर नहीं पड़े / ईमान मर्सल

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जब मैं भीतर घुसी, मेरे दादाजी कोने में खड़े अपनी कॉफ़ी उंड़ेल रहे थे. सामने की दीवार पर नसीर के नाक-नक़्श धुंधले पड़ रहे थे क्योंकि पुरानी छत ऐसी नहीं थी कि बारिश की बूंदों को रिसने से रोक सके. वह प्रतिभाशाली कारीगर जिसने वह रेखांकन किया था (हालांकि उसे कभी भी कृषि-सुधारों का लाभ नहीं मिल पाया), पिछले हफ़्ते किसी सरकार अस्पताल में मर गया. मेरे दादाजी ने मुझे एक गठरी दी. उसे खोला तो भीतर एक शिशु था, जो अभी भी मां के गर्भ के द्रव से गीला था. मैंने कहा, यह तो मेरा ही बेटा होना चाहिए. मैंने उसका नाम मुराद रख दिया. जो नाल हम दोनों को जोड़े रखती थी, मैंने वह काट दी ताकि उसका ख़ुद का एक वजूद हो. उसके पेट पर नाभि के आकार में उदासी का एक बीज बन गया. मैंने उसे लैपटॉप के बैग में रखा और अपनी टोयोटा कोरोला चलाते हुए रॉकीज़ तक गई. रास्ते भर में क़ुरान से यूसुफ़ वाला अध्याय सुनती रही. मैं लंबी दूरी के उन टैक्सी ड्राइवरों के बारे में सोचने लगी, जो यूसुफ़ वाले अध्याय को बहुत चाव से सुनते हैं. आखि़र सुनें भी क्यों न, उसमें सेक्स का सीन जो है. मैंने तय किया कि मैं ख़ून से पुती क़मीज़ों और घृणा के सौंदर्यशास्त्र पर एक लेख लिखूंगी.

पहाड़ बर्फ़ से ढंके हुए थे, और कुछ क़दम चलते ही धरती बीच से फट गई और उसमें से एक कॉफ़ी हाउस प्रकट हो गया. मैं एक बार इस कॉफ़ी हाउस में जा चुकी हूं. मेरी एक सहेली (जिसने एक कीड़े से शादी की थी और वह कीड़ा उसे खा गया था) और मैं, हम दोनों ही भूखे थे. एक झुका हुआ बूढ़ा हमारे लिए डबलरोटी और नमक ले आया. वह बूढ़ा अब इस कॉफ़ी हाउस में नहीं है, लेकिन उसकी विधवा आती है और मेरे उन तीन दोस्तों के बीच से गुज़र जाती है, जिन्हें अभी कुछ बरस पहले ही बड़ी सरकारी नौकरी मिली है और जो अब भी, उसी तरह, वही, बातें करते हैं, जैसी बरसों पहले किया करते थे. मुझे पता चला कि हमारा चौथा दोस्त अपने पिता की क़ब्रगाह में है और हमारा पांचवां दोस्त रोटरडम में एक चर्च के सामने तूतनखामन का मुखौटा पहनकर बैठता है और राहगीर उसकी टोपी में छुट्टे पैसे डाल जाते हैं. मेरे दोस्तों का ध्यान मेरी गठरी की तरफ़ गया और उन्होंने पूछा, 'यह तुमने कहां से पा लिया?' और तभी नज़दीक की एक झील से हमें लोरी-सोहर की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. हमने वहां बच्चे के जन्म के जश्न में सुब्बू मनाया. जश्न, दावत और नाच के उन्माद के बीच मैंने देखा, अचानक वहां दादाजी पहुंच गए हैं, अपनी शॉल, छड़ी और दीवार पर बने नसीर का चेहरा लेकर (बारिश तब तक उस चेहरे को पूरी तरह धो नहीं पाई थी). उन्होंने मुझसे गठरी ले ली और वापस चले गए

अंग्रेजी से अनुवाद : गीत चतुर्वेदी