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यथार्थ / रजनी अनुरागी

सोचा था खुल के जियेंगे
देखो फिर बांध गये हाथ
 
सोचा था खुल के बरसेंगे
देखो रिक्त हो गई देह
 
सोचा था सहेजेंगे सपने
देखो बिखर गई नींद
 
उजले कल की उम्मीद में
आज गया रीत

देखो जीवन यूँ ही गया बीत ......