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यथा-पूर्व / महेन्द्र भटनागर

हमें

सामर्थ्य-क्षमता का

परिज्ञान कैसे हो ?


हमें

सम्भावनाओं का

अनुमान कैसे हो ?


हम अपरिणामी, तटस्थ, अयुक्त

स्थितियों में

जीते हैं !