भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यदि तुम रहो प्रिय! साथ में / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 20 दिसम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बादलों पर नित पग धरूँ
गगनपथ पर मैं डग भरूँ
यदि तुम रहो प्रिय! साथ में

चाँद का दर्पण निहारूँ
तप्त तन को मैं सँवारूँ
यदि तुम रहो प्रिय! साथ में

प्रकृति- सी उन्मुक्त नाचूँ
बासन्ती पृष्ठों को बाँचूँ
यदि तुम रहो प्रिय! साथ में

प्रश्नपत्र यह जीवन का
लिख दूँगी उत्तर मन का
यदि तुम रहो प्रिय! साथ में
 -0-