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यदि मैं भी चिड़िया बन पाता / कुंजबिहारी चौबे

यदि मैं भी चिड़िया बन पाता!

तब फिर क्या था रोज़ मजे़ से,
मैं मनमानी मौज उड़ाता!

नित्य शहर मैं नए देखता,
आसमान की सैर लगाता!

वायुयान की सी तेजी से
कई कोस आगे बढ़ जाता!
रोज़ बगीचों में जा-जाकर
मैं मीठे-मीठे फल खाता!

इस डाली से उस डाली पर
उड़-उड़ करके मन बहलाता!

सूर्योदय से पहले जगकर
चें-चें करके तुम्हें जगाता!

सदा आलसी लोगों को मैं
चंचलता का पाठ पढ़ाता!