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यहाँका पुराना देखेँ / रवि प्राञ्जल

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मान्छे यहाँका पुराना देखेँ
आँखा भएका काना देखेँ

जहाँ ओत लागेको छु
जीर्ण त्यहाँ छाना देखेँ

बिना अपराध कैदी छु
घरलाई नै थाना देखेँ

‘कथा’ भयो ‘हरिश्चन्द्र’
फटाहाको जमाना देखेँ

बैरी भए सारा दुनिया
‘मित्र’ एक-दुई जना देखेँ

सुनाउँदिन अब गजल
समय काट्ने बहाना देखेँ

‘रवि’ लाई कुन्नि के भो
आफन्त नै विराना देखेँ ।