Last modified on 18 नवम्बर 2020, at 23:46

यहाँ एक तालाब था / सतीश कुमार सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 18 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब भी नम है यहाँ पर की मिट्टी
बेशरम की झाड़ियों के झुरमुट में छिपा है
कुछ बेशर्म लोगों की
काली करतूतों का राज

अपनी मिल्कियत बताकर
धीरे धीरे पाटते रहे
इसे समाज के कर्णधार

लगभग घूरे में तब्दील किया पहले
रातों रात बिछा दिए
इसके सीने पर मिट्टी के ढेर

यहाँ एक तालाब था
जब भी गुजरता हूँ
आवाज आती है तब
टूटे शिव मंदिर के पास के ढूह से

रात भर मेरे सपने में
ह हो देबी गंगा •• गीत गाती
भोजली विसर्जन को
इसके तट पर खड़ी
लड़कियाँ, अधेड़ स्त्रियाँ
इस तालाब की महिमा बखानती हैं

इसके गाद और पुरइन पर बैठ
सूरज प्रभाती गाता था
पान चबाते कहते
हारमोनियम मास्टर गोबिंद गुरूजी

काजल की तरह
दिखता था इसका पानी
बताता है बूढ़ा घासी पटवारी

इसे समतल कर
खेत बनाने की
चल रही है तैयारी

सोचता हूँ
जब मर ही गया आँख का पानी
तो कहाँ बचेगा
तालाब का पानी

लालच में मरी जा रही
इन आँखों में
कोई मिट्टी क्यों नहीं डालता?