भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह अग्निकिरीटी मस्तक / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:27, 25 अप्रैल 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब चेहरों पर सन्नाटा
हर दिल में पड़ता काँटा
हर घर में गीला आँटा
वह क्यों होता है ?

जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
साँसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिए ?

कुछ लोग खेत बोते हैं
कुछ चट्टानें ढोते हैं
कुछ लोग सिर्फ़ होते हैं
इसका क्या मतलब ?

मेरा पथराया कन्धा
जो है सदियों से अन्धा
जो खोज चुका हर धन्धा
क्यों चुप रहता है ?

यह अग्निकिरीटी मस्तक
जो है मेरे कन्धों पर
यह ज़िन्दा भारी पत्थर
इसका क्या होगा ?