भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह आम रास्ता नहीं है / अमित धर्मसिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 20 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित धर्मसिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनका बनाया एक भी रास्ता आम नहीं था
इसलिए उन्होंने हर रास्ते पर लिख रखा था
यह आम रास्ता नहीं है
अथवा यह निजी रास्ता है
बिना आज्ञा प्रवेश निषेध।
प्रवेश की आज्ञा आम आदमी को नहीं
उनके अपने खास लोगों को थी
सिर्फ वे ही आ-जा सकते थे
उनके बनाये खास और निजी रास्तों से।

उन्होंने कुछ खास सुविधाओं को ध्यान में रखकर
रास्तों पर कुछ पुल बनवाये थे
ताकि वे भीड़ के ऊपर से जा सके
इन पुलों पर कोई सिग्नल, रेड लाइट आदि नहीं थे
इसलिये वे बगैर रोक-टोक
आ-जा सकते थे पुलों से कभी भी।

आम आदमी इन पुलों से भी नहीं आ-जा सकता था
उसके पैरों में इतनी रफ्तार नहीं थी
कि वह दौड़ सकता उनके संवाहको के साथ।
 
बारिश में कुछ पल आम आदमी
पुल के नीचे खड़ा भर रह सकता था,
रिक्शा वाले, ठेली वाले या दूसरे फेरीवाले
सुस्ता भर सकते थे पुल के नीचे
छोटी-मोटी सब्जी आदि की दुकान लगाकर
जीवन चलाने की जद्दोजहद कर सकते थे
या सो सकते थे उस जगह
जो बच गयी हो गायों-बैलों या गधे-घोड़ों से।

कुछ पुलों के नीचे तो इतनी गंदगी जमा कर दी गयी थी
कि जानवर तक जाने से कतराते थे उनके नीचे
कुछ पुल इतने कमज़ोर बनाये गए थे
कि इनके नीचे दबकर मर सके आम आदमी।

और हाँ! खास रास्तों के नीचे या ऊपर
कुछ, सब वे या पैदल पार पथ भी बनाये गए थे
जो सिर्फ आम आदमी के लिये थे
ताकि आम आदमी को भेजा जा सके
मुख्य मार्ग से इस तरफ या उस तरफ॥