http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AF%E0%A4%B9_%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%AF_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0&feed=atom&action=historyयह इंसान बनने का समय है / सीमा संगसार - अवतरण इतिहास2024-03-28T09:02:57Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AF%E0%A4%B9_%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%AF_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0&diff=243426&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2018-03-06T06:14:33Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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अपनी पुतलियों को फैलाकर <br />
सिकोड़ लेती है <br />
बजबजाती भूख से <br />
अतृप्त इच्छाओं को...<br />
खैरात में मिले उन टुकड़ों को <br />
चबा–चबा कर खाती हैं <br />
ताकि देर तलक <br />
बजती रहे <br />
चपर चपर की आवाज़ <br />
और / उसकी गंध को भारती रहे वह <br />
अपनी नथुनों में! <br />
जब इंसान चुक जाता है <br />
अपनी संप्रेषणीयता बनाने में <br />
पशु की आँखें बोल पड़ती है...<br />
यह इंसान की आखिरी अवस्था है <br />
जब इंसानियत <br />
पशुता की भेंट चढ़ जाती है <br />
और / पशु इन्सान बनने लगता है! <br />
यह इंसान का / पशुता की शक्ल में <br />
इंसान बनने का समय है...<br />
</poem></div>Sharda suman