Last modified on 3 नवम्बर 2023, at 01:10

यह ज़माना जो लिए / हरिवंश प्रभात

यह ज़माना जो लिए धीमी नहीं रफ़्तार है।
उसके आगे कल की अच्छी चीज़ भी बेकार है।

बे ज़रूरत जो उठाता है क़दम संसार में,
भूल अपनी मानने को वह कहाँ तैयार है।

वह बुरे रास्ते की जानिब बढ़ नहीं सकता कभी
साथ अपने जो लिए अच्छाई का आसार है।

एक से दो हो गया है, बँट के घर मतभेद से,
बीच आँगन में खड़ी अब हो गई दीवार है।

वक़्त ने जब से है ली करवट बुरे हालात की,
है पुराने से भी बदतर जो नया संसार है।

एक रोगी के लिए लाया गया जब इक अनार,
उसको खाने को भला, चंगा हुआ बीमार है।

क्या कहें ‘प्रभात’ बदले वक़्त के दस्तूर को
लूटता है घर वही जो घर का पहरेदार है।