भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यह दिया बुझे नहीं / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
 
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
घोर अंधकार हो¸
+
<poem>
 
+
घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो¸
+
चल रही बयार हो,
 
+
 
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
 
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
 +
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है ।
  
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
+
शक्ति का दिया हुआ,
+
शक्ति को दिया हुआ,
शक्ति का दिया हुआ¸
+
भक्ति से दिया हुआ,
 
+
यह स्वतंत्रता–दिया,
शक्ति को दिया हुआ¸
+
 
+
भक्ति से दिया हुआ¸
+
 
+
यह स्वतंत्रता–दिया¸
+
 
+
 
रूक रही न नाव हो
 
रूक रही न नाव हो
 +
जोर का बहाव हो,
 +
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं,
 +
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है ।
  
जोर का बहाव हो¸
+
यह अतीत कल्पना,
 +
यह विनीत प्रार्थना,
 +
यह पुनीत भावना,
 +
यह अनंत साधना,
 +
शांति हो, अशांति हो,
 +
युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो,
 +
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
 +
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है ।
  
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं¸
 
 
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
 
 
 
यह अतीत कल्पना¸
 
 
यह विनीत प्रार्थना¸
 
 
यह पुनीत भावना¸
 
 
यह अनंत साधना¸
 
 
शांति हो¸ अशांति हो¸
 
 
युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो¸
 
 
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
 
 
देश पर¸ समाज पर¸ ज्योति का वितान है।
 
 
 
तीन–चार फूल है¸
 
 
आस–पास धूल है¸
 
 
बांस है –बबूल है¸
 
 
घास के दुकूल है¸
 
 
वायु भी हिलोर दे¸
 
 
फूंक दे¸ चकोर दे¸
 
 
कब्र पर मजार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
 
  
 +
तीन–चार फूल है,
 +
आस–पास धूल है,
 +
बांस है –बबूल है,
 +
घास के दुकूल है,
 +
वायु भी हिलोर दे,
 +
फूंक दे¸ चकोर दे,
 +
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं,
 
यह  किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
 
यह  किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
 
  
 
झूम–झूम बदलियाँ
 
झूम–झूम बदलियाँ
 
 
चूम–चूम बिजलियाँ
 
चूम–चूम बिजलियाँ
 
 
आंधिया उठा रहीं
 
आंधिया उठा रहीं
 
 
हलचलें मचा रहीं
 
हलचलें मचा रहीं
 
+
लड़ रहा स्वदेश हो,
लड़ रहा स्वदेश हो¸
+
यातना विशेष हो,
 
+
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं,
यातना विशेष हो¸
+
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है ।
 
+
</poem>
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
+
 
+
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।
+

22:03, 29 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है ।

शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता–दिया,
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो,
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है ।

यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है ।


तीन–चार फूल है,
आस–पास धूल है,
बांस है –बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूंक दे¸ चकोर दे,
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।

झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है ।