Last modified on 13 जनवरी 2009, at 20:52

यह पथ-1 / सुधीर मोता

सुनो रुको
देखो इस ओर
यह स्वर है जीवन की गाड़ी के
हहरा कर चलते जाने का

यह देखो यह
उड़ती धूल
यह छिपकर
पदचापों का
अपने को ही
ढाँक-मूँदकर
इतराते छलते जाने का

यह टहनी पर पत्तों के
आने-जाने का
सतत प्रवाह
और उगे एक दिन
फिर आने को
रह-रह कर झरते जाने का।