भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह सावन सोक नसावन है मनभावन यामें न लाज भरौ / हरिश्चन्द्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिश्चन्द्र }} <poem> यह सावन सोक नसावन है मनभावन या...)
यह सावन सोक नसावन है मनभावन यामें न लाज भरौ ।
जमुना पे चलौ सु सबै मिलिकै अरु गाइ बजाइ कै शोक हरौ।
हरि आवत हैँ हरिचंद पिया अहो लाड़िली देर न यामें करौ ।
बलि झूलौ झुलावौ झुकौ उझकौ यहि पाखैँ पतिब्रत ताखैँ धरौ ।
हरिश्चन्द्र का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।